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ये बेज़ार सी रातें
कही एक अनजान सी चुप्पी साधे
बिन बोले बहुत कुछ कह जाती है,
कही अंधेरे में छिपाए वो ढेर सारी यादें
पर अस्को से अपनी वो हर बात कह जाती है
बहुत कुछ छिपा है पर पहरा नही है
सिर्फ यादों से ये रात ठहरा नही है
कई बूंदे छिपी है उन आँखो के आगे
पर फिर भी ये रात उतना गहरा नही है
कही धीमी सी है वो मीठी आवाज़े
जो तन्हाई को भी सुरीली बना दे
हर आमोखास समझ ले इसको
बाते ये इतनी लचीली नही है
ये रातें इतनी विनोदी नही है
दिल के हर राज को वो
खामोशी में बांधे,
लाखो के तकियों को वो
बिन बादल भीगा दे,
खुद अंधेरे में है पर
कई दीपे जला दें,
लोग समझे नही पर
ये जीना सीखा दे,
ये गुमसुम सी राते
ये बेज़ार रातें
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