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A small poem

वो सर्द छांव सी बैठी है,
मेरे यादों के चौबारों पर
कही राज हज़ारो दबे पड़े
उनके होंठो की लाली पर
कही मैं खफा
कही वो नासाज
दोनों अनजाने बन बैठे है
होकर नाराज एक दूजे से,
दोनों खुद को मनाने बैठे है।

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