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हाल-ए-ज़िन्दगी

वो हाल पूछते हैं दिल का
मैं गुमसुम सा मुस्कुराया करता हूँ,
वो बूंद जो छुपी है तूफान को समेटे
मैं उसे चंचल सी लहरों में छिपाया करता हूँ,
हाल-ए-दिल कुछ ऐसा है कि क्या कहूँ
काफी दिनों से दिल में बर्बादी का मंजर लिए बैठा हूँ,
लोग देखते है तमाशबीन की तरह मुझको
और मैं हालात-ए-ज़िंदगी को चंद अल्फाजो में छुपाये बैठा रहता हूँ

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